रविवार, 1 फ़रवरी 2015

झूम उठी भारतमाता

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झूम उठी भारतमाता

दूर क्षितिज पर बैठा एक पंछी आज भरतधरा पर देख रहा है,कैसा विहंगम दृश्य है ! आज क्षितिज नृत्यशाला बना हुआ है, काले मेघ जलपुष्पों की वृष्टि कर माता वसुन्धरा का अभिवादन कर रहे हैं। भारत माता का वक्षस्थल शीतल और नेत्र अश्रुपूरित हैं ।दग्ध भारतभूमि आज शांत है, विह्वल भरतभूमि आज विश्राममयी प्रतीत हो रही है । निश्चित ही कुछ अनुपम हुआ है !
               चातक माता से पूछ बैठा हे माता वसुन्धरे ! ऐसा क्या अद्भुद हुआ है, जो आप इतनी आलोकित,प्रफुल्लित प्रतीत हो रही हैं? तब भारतमाता नेत्रालिंगन कर बोलीं, आज पर्व है! आज उत्साहदिवस है! आज भारत का गणतंत्र दिवस है । अधीर चातक कुछ अचरज से बोला, परन्तु ये पर्व तो 66 वर्षों से मनाया जा रहा है, इससे पूर्व आपका मुखमण्डल इस प्रकार आलोकित न होता था ?
                सुनो पुत्र ये स्वरलहरियाँ, मानो माँ वागीशा के हृदय का स्पंदन हैं, सुर भी प्रफुल्लित हैं । तभी नेत्रों की कोर से निकला एक अश्रु बोल पड़ा, ट्टयत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ ! आज देवों का स्वर्गावतरण हुआ है, आज माता भावमयी हैं। माता का स्पन्दित हृदय भी बोल उठा, सदैव मेरी विपदा पर रुदन करने वाले ये मेघ, आज मुझ पर जलपुष्पों की वृष्टि कर रहे हैं ।
             चातक की जिज्ञासा बढ़ी, पर माता ऐसा क्या अद्भुद घटा हैभावविभोर माता ने दृष्टिपात किया राजपथ पर, देखो, मुझको अभिनवदान मिला है’, मेरी बेटियों को अधिकार मिला है। आज ये देश मेरी बेटियों का सम्मान कर रहा है, आज ये देश मेरी बेटियों पर गर्व कर रहा है । जाओ मेघाें, मेरी सन्तानों का जलाभिषेक करो, श्वेत वर्ण से गौरव तिलक करो । आज मेरी बेटियों को गृहणी से प्रहरी का अधिकार मिला है । ज्यों ज्यों राजपथ पर इनके कदम चलें त्यों त्यों तुम गौरवगान करो । आज अपने अस्तित्व की शक्ति का डंका बजाने ये राजपथ पर चल पड़ीं हैं, देखूं तो ! मेरे अतीत के कांटे कहीं इनकी पग बाधा न बनें, मेघों जाओ मेरे आंचल को अपने जल से कोमल कर दो । आज मैं प्रसन्नता से नृत्य कर रही हूँ, मेरा मान मुझे वापस मिल रहा है । सीता, पद्मावती, पन्ना, लक्ष्मीबाई जैसी अनगिनत बेटियों की अलौकिक ज्योति को विस्मृत कर चुका ये देश, दिव्या से दिव्यता प्राप्त कर रहा है, स्नेह से सिंचित हो उठा है। मेरी विवशता पर मौन रहने वाला ये देश, मेरे दंशों पर तंज कसने वाला ये देश, आज कृतज्ञ है । आज में जी उठी हूं, मेरे निस्तेज होते प्राणों को प्राणवायु मिली है । देवों से विमुख हुई मुझको, अब देवाशीष मिला है । देखो मेरी बेटियाँ देश की प्रहरी बन राजपथ पर झण्डा वन्दन कर रही हैं । आज मेरी बेटियों को उनका सम्मान मिल रहा है । मेरी बेटियों को कभी दहेज की अग्नि में दग्ध करने वाला, कभी उनके सम्मान को कुत्सित करने वाला और भी न जाने कितने दंश देने वाला ये देश मेरी बेटियों के प्रति आज कृतज्ञ है ।
                दृष्टिपात करो ! राजपथ पर बैठे इस जनसमुदाय की ओर, इनमें कितने पिताओं का ललाट गर्व से चमक उठा है, कितने भाइयों के मुख प्रसन्नता से खिल उठे हैं, और उधर तो देखो कितनी माताओं के आंचल बार बार अपने नेत्रों पर परदा डाल रहे हैं ताकि उनकी बेटियों को उनकी ही नजर न लग जाये । इधर दूसरी ओर दृष्टिपात करो मेरे बच्चों, अनगिनत पिताओं के नेत्रों में अपनी बेटियों को देश के लिए विदा करने का स्वप्न अंकुरित हो उठा है । सब कुछ सुरम्य है, कितने वर्षों के बाद ये अवसर आया है । आज का उत्सव इतिहास के पन्नों पर स्वर्णांकित हुआ है । आज मैं प्रसन्न हूँ, अलंकृत हूँ । अब गर्व से कहती हूँ , मैं भारत माता हूँ !
                लेकिन बस अब एक ही विनती है मुझे यूँ ही अलंकृत रहने देना, गरिमामयी रहने देना, मेरे सम्मान के तुम प्रहरी बनना । मुझको भारत माता रहने देना !

कीर्ति दीक्षित

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