सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

ALHAD CHIDIYA: पक्के आँगन की मिटटी

ALHAD CHIDIYA: पक्के आँगन की मिटटी

पक्के आँगन की मिटटी


पक्के  आँगन में मिटटी क़ा ढेला था .

बिखरे बिखरे  कुछ  फूल  थे  उपेक्षित   

टूटे  ,मुरझाए  , सूखे, मर चुके 

मिटटी का भी न था कोई म़ोल मृत फूलों की कब्र बना दी मिटटी मे 

दिन बीते रातें बीती भोर बीते 

पर उस दिन हुआ नया भुन्सारा 

 सब कुछ वही था पर 

वहां कोने में कुछ नया था 

छिपा छिपा सा खिला खिला सा 

नन्हा नन्हा उज्जवल उज्जवल 

प्रकृति के रंग से धुला धुला 

मृदा में खेल रहा था

 जीवन मृत में अंकुर फुट था 

एक नूतन आकर लिए 

नव पल्लव साकार लिए

 मेरे पक्के आँगन में जीवन अंकुर फूटा था