सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कद बढ़ रहा मकान का

1.इन्सान छोटा हो रहा 
और कद बढ़ रहा  मकान  का 
     आसमान को भेद दें
हमने बना दी दीवारें इतनी बड़ी 
   रेंगती चीटियों से लगते हैं
जो सोये हैं आसमान की छत तले 
     आप उतने बड़े हैं
 जितना कद बड़ा  है 
आपके मकान  का
 इन्सान छोटा हो रहा 
और कद बढ़ रहा मकान  का।

2. जिसका हुआ जितना गगनचुम्बी आशियाना 
          वो उतना बड़ा है 
          और छोटे हैं वो
 जिनका घर छोटी सी गलियों में पड़ा है .

3. कल हुआ करती थी पहचान  इन्सान की 
आज अहमियत होती है मकान की 
अब ऊचाई  ताकती है ऊँची खिड़कियों से 
और छोटी हो रही कीर्ति इन्सान की 

4. कितनी ही बुलन्द  हो इंसानियत इन्सान की 
आज कीमत है सिर्फ ऊचे मकान की 
आज वनवासी राम भी दर दर भटकते हैं 
राजनीति  की आग में पल पल झुलसते हैं 
आज कीमत है उसी भगवान की 
जितनी ऊचाई हो मंदिर के मचान की . 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

ALHAD CHIDIYA: पक्के आँगन की मिटटी

ALHAD CHIDIYA: पक्के आँगन की मिटटी

पक्के आँगन की मिटटी


पक्के  आँगन में मिटटी क़ा ढेला था .

बिखरे बिखरे  कुछ  फूल  थे  उपेक्षित   

टूटे  ,मुरझाए  , सूखे, मर चुके 

मिटटी का भी न था कोई म़ोल मृत फूलों की कब्र बना दी मिटटी मे 

दिन बीते रातें बीती भोर बीते 

पर उस दिन हुआ नया भुन्सारा 

 सब कुछ वही था पर 

वहां कोने में कुछ नया था 

छिपा छिपा सा खिला खिला सा 

नन्हा नन्हा उज्जवल उज्जवल 

प्रकृति के रंग से धुला धुला 

मृदा में खेल रहा था

 जीवन मृत में अंकुर फुट था 

एक नूतन आकर लिए 

नव पल्लव साकार लिए

 मेरे पक्के आँगन में जीवन अंकुर फूटा था 

बुधवार, 30 मई 2012

शुक्रवार, 18 मई 2012