शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

MERI DIARY: सुखकर्ता दुखहर्ता

MERI DIARY: सुखकर्ता दुखहर्ता: "वैसे तो हर रोज़ सुबह शाम ऑफिस आते जाते रास्ते कि झुग्गीयों को देखती थी. साथ ही छोटे छोटे बच्चो के हाथ में सूखे रोटी के टुकड़े या फिर चंद चा..."

सुखकर्ता दुखहर्ता

वैसे तो हर रोज़  सुबह शाम ऑफिस आते जाते रास्ते कि झुग्गीयों को देखती थी. साथ ही छोटे छोटे बच्चो के हाथ में सूखे रोटी के टुकड़े  या फिर चंद चावल के दानो के साथ.रोज़ कि बात थी तो कोई ज्यादा ध्यान भी नहीं जाता था.अचानक एक दिन उन पन्नी कि झुग्गियों के आगे ढोल नगाड़े बजते दिखाई दिए. रोते बच्चे बेहद खुश नाचते दिखाई दिए. मुझे भी देख कर अच्छा लगा.तब याद आया गणेश चतुर्थी आ गयी है.तभी धूल भरी झोपड़ियों में रौशनी और रंग दिख रहे हैं.ऐसा नहीं कि मैं गणेश  चतुर्थी के बारे में नहीं जानती थी, पर हमारे यहाँ इतनी रौनक नहीं होती.हालाँकि हमारे यहाँ तो हर महीने गणेश चतुर्थी होती है.चार गणेश भगवन कि कहानियां होती हैं और गोबर के गणेश बनाकर पूजा होती है.इसलिए ये रौनक नई सी लगी.पर सच्चे अर्थों में समझ आ गया कि गणेश जी सुखकर्ता दुःख हरता हैं. पूरे साल नन्हे नन्हे बच्चों को अपनी कल्पना के अनुसार गणेश  कि मूर्ति को आकार देते देखा था.और गणेश चतुर्थी वो दिन था जब विघ्न विनाशक उनके दुखो को दूर करेंगे. हालाँकि गणेश भगवान साल भर उस झोपडी में रहे लेकिन जाते जाते  उनके दुखों को दूर कर  जाते हैं.....अपने घर में गणेश जी कि कहानियां बहुत पढ़ी और सुनी.पर आज मैंने देखी थी.इसलिए मन में अलग ही रोमांच था. क्योकि आस्था जीती थी .आज उन झोपडी के बच्चों को भगवान गणेश को विदा करते देखा.और उनके विश्वास को देखा .कितने आश्वस्त थे अपनी खुशियों के प्रति.और वही हुआ अगले दिन उन पैरों में लाइट वाले जूते थे जो कभी धूल से सने रहते थे, हाथ में सूखी रोटी कि जगह सेब का छोटा ही सही पर एक टुकड़ा था. हर झोपडी के सामने चूल्हा जल रहा था. नंगे बदन बच्चों के शरीर पर कुछ कपडे थे.तब समझ आया कि कैसे श्री गणेश सुखकर्ता हैं.बड़े बड़े पंडाल वालों को भी इतनी खुशी नहीं होगी जितनी इन मासूमों को. अब फिर से  गणेश आने का इंतज़ार है.पन्नी कि झोपड़ियों में अब भी कुछ गणेश प्रतिमाएं बची हैं ,लेकिन फिर से सांचे निकलने लगे अपनी कल्पना के विघ्न विनाशक को नया रूप देने के लिए.और विश्वास चट्टान कि तरह द्रण, कि दुखहर्ता फिर आयेंगे और उन पर सुखों कि बरसात करेंगे. जय श्री गणेश    

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

MERI DIARY: बेचारा दुर्भाग्य

MERI DIARY: बेचारा दुर्भाग्य: "दुर्भाग्य को बेचारा कहने पर बहुत से लोग शायद हंसने लगें...पर हकीकत यही है की अपनी करनी का ठीकरा अगर किसी पे फोड़ना हो तो दुर्भाग्य से अच्छा ..."