सोमवार, 12 अप्रैल 2010

शहीदों को नमन

सैनिक घर जाके मत कहना संकेतों से समझा देना...और अगर मेरी माता पूछें आँचल फाड़ दिखा देना सैनिक घर जाके मत कहना संकेतों से समझा देना....और अगर मेरी बहना पूछे राखी तोड़ दिखा देना....सैनिक घर जाके मत कहना संकेतों से समझा देना...और अगर मेरी पत्नी पूछे चूड़ी तोड़ दिखा देना...सैनिक घर जाके मत कहना संकेतों से समझा देना....देश के लिए जब पहली गोली उस सैनिक ने अपने दिल पर खाई तो उसमे बैठे उसके सभी अपने घायल हो ;चले थे....और छलनी हो गया उस धरती माँ का सीना जिसकी मिटटी से उस वीर योद्धा ने जन्म लिया था...लेकिन अगर कुछ बचा था तो वो था उसका प्रेम अपनों के प्रति अपने देश के प्रति ....वो आगे बढ़ता रहा गोलियां चलती रहीं ...शरीर ने भी साथ छोड़ दिया लेकिन वो प्रेम बाकी रहा...उसकी मृत देह को जब तिरंगे में लपेट के ले जाया जा रहा था हर आँख नम थी ...लेकिन उसकी आत्मा खुश थी की वो मरा नहीं अमर हो गया...लेकिन ये क्या,,,, सैनिक तो उस आँगन की तरफ बढ़ रहे हैं जहाँ कोई तेज़ आवाज सुनकर उसे उसकी माँ अपने आँचल में छिपा लेती थी....जहाँ उसकी बहिन ने अपनी राखी बाँधकर उसकी लम्बी उम्र की दुआएं की थी....और उसका क्या होगा जो मेरे कंधे पे हाथ रखे चुपचाप आँखे मेरे आँगन में आई थी...जिसने अपनी प्रीत से मुझे नई ताकत दी थी....मेरे अपने मेरी ख़ुशी को नहीं समझेंगे...वो तो मेरे न रहने की खबर के साथ ही टूट जायेंगे...आत्मा यही कह रही थी वहां मत जाओ...लेकिन ये क्या..मेरी माँ की आँखे आंसुओं से गीली तो हैं पर उनमे गर्व भी दिख रहा है....उसके शहर की मिटटी उसके संकेतों को समझ गयी है की उसका लाल अपने धरती माता के लिए कुर्बान हो गया.....बाबू जी के कंधे पर मेरी अर्थी ने उनके कदम तो जरूर लड़खड़ा दिए हैं ..लेकिन सीना गर्व से चौड़ा हो गया....मेरा बेटा अमर हो गया....ये कहते कहते उनकी आँख तो नम हो जाती ....पर गर्व भी है की उनका लाल देश के काम आ गया....उसका छोटा सा बेटा अपनी तोतली जुबान में यही कहता है की मैं भी पापा की तरह सिपाही बनुगा...और उसके बेटे की माँ अपने बेटे को सीने से लगा लेती है और कहती है...हाँ तू भी सिपाही बनेगा....ऐसे वीरों को और उनके परिवारों को मेरा शत शत नमन.....