बुधवार, 20 जनवरी 2010

" मैं और इलेक्ट्रोनिक मीडिया "

मैं इलेक्ट्रोनिक मीडिया का हिस्सा हूँ...जब पहली बार इस क्षेत्र में कदम रखा तो लोगो ने बहुत बड़ी बड़ी बाते की...मैं राजनीती शास्त्र की छात्र भी रही और एक ऐसी छोटी जगह की रहने वाली थी जहाँ राजनीती का मतलब ही मारकाट करके किसी भी तरह सत्ता पाना पहला कर्त्तव्य होता है..लेकिन जब यहाँ आई बहुत कुछ और भी सामने आया...और वो सब इतना भयानक है कि मेरी रूह ही कांप गयी....पिछले दिनों तमिलनाडु कि एक खब़र आई एक सब इंस्पेक्टर मदद के लिए आधे घंटे से ज्यादा सर पटकता रहा तडपता रहा लेकिन कोई उसके पास भी नहीं फटका...उसके विसुअल्स इतने वीभत्स थे कि किसी कि भी आत्मा दहल जाये ...लेकिन हाय री राजनीती और उसके पैरोकार ! इतनी संवेदन हीनता शायद यही संभव थी... खून से लथपथ उन नेताओ कि सुरक्षा में तैनात रहने वाला वो सिपाही उन राजनेताओ अधिकारियो के सामने ज़िन्दगी के liye फरियाद करता रहा....लेकिन तमगों से सजी उसकी छाती और हमेशा देश का मस्तक ऊँचा रखने वाला वो सिपाही सर पटकता रहा.. और वहां खड़े महानुभावों में से एक महानुभाव उसके कटे पैर और गर्दन पर पानी डाल रहे थे....मंत्री जी अपने सफ़ेद कपड़ों को सम्हाले नज़र आ रहे थे और प्रशासनिक अमला शायद उसके मरने का इंतज़ार कर रहा थे.......जब तक उसे अस्पताल ले जाया गया उस रखवाले कि मौत हो गयी..तमगों से सजी उसकी छाती खून से लथपथ मिटटी में मिल गयी ..लेकिन हुआ क्या ये हम सब जानते हैं.....ये तो थी मंत्रियो कि बात लेकिन उससे भी कही ज्यादा संवेदन हीन हम थे ...हमारा मीडिया उसकी तस्वीरें लेता रहा लेकिन इंसानियत कि तस्वीर को कही दूर ही छोड़ आया था...इसके बाद भी हमारी संवेदन हीनता नही ख़त्म होती हमने वो सारी तस्वीरें आम लोगो तक पहुचाई सभी मंत्रियो अधिकारियो को कोसा लेकिन अपनी मानवता कहाँ थी वो सायद दबी जुबान से ही बाहर आ रही थी...उस दिन मुझे अपने ऊपर भी शर्म आई कि मैं भी उस संवेदनहीन समाज का हिस्सा हु..मैं आज भी उस वाकिये को याद करके सिहर उठती हु..लेकिन क्या फायदा ये रोज़ होता है....ये तो एक इन्सान की कहानी थी ...ऐसे न जाने कितने इंसानों कि कहानी रोज़ बनती हु लिखती हु...लेकिन मेरी आत्मा मुझसे ये सवाल हर बार करती है कि क्या ये जज्बा ही पत्रकरिता कहलाता है..मैं कोई जवाब नहीं दे पाती बस सिहर के रह जाती हु....आज भी वो इन्सान मेरी आँखों के सामने घूमता है और सवाल करता है आखिर क्या मैं एक अच्छी कहानी के अलावा उस वक्त कुछ नहीं था???