सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कद बढ़ रहा मकान का

1.इन्सान छोटा हो रहा 
और कद बढ़ रहा  मकान  का 
     आसमान को भेद दें
हमने बना दी दीवारें इतनी बड़ी 
   रेंगती चीटियों से लगते हैं
जो सोये हैं आसमान की छत तले 
     आप उतने बड़े हैं
 जितना कद बड़ा  है 
आपके मकान  का
 इन्सान छोटा हो रहा 
और कद बढ़ रहा मकान  का।

2. जिसका हुआ जितना गगनचुम्बी आशियाना 
          वो उतना बड़ा है 
          और छोटे हैं वो
 जिनका घर छोटी सी गलियों में पड़ा है .

3. कल हुआ करती थी पहचान  इन्सान की 
आज अहमियत होती है मकान की 
अब ऊचाई  ताकती है ऊँची खिड़कियों से 
और छोटी हो रही कीर्ति इन्सान की 

4. कितनी ही बुलन्द  हो इंसानियत इन्सान की 
आज कीमत है सिर्फ ऊचे मकान की 
आज वनवासी राम भी दर दर भटकते हैं 
राजनीति  की आग में पल पल झुलसते हैं 
आज कीमत है उसी भगवान की 
जितनी ऊचाई हो मंदिर के मचान की .