Article on today’s scenario of Delhi Election:
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू रे सांवरिया ये धुन बनी तो थी कृष्ण के लिए, लेकिन आजकल नेतानगरी जनता के लिए गा रही है । करबद्ध हो ढोल—नगाड़ों के साथ जनता की पूजा करने निकलती है ।चारों ओर चुनावों का शोर है, वैसे तो ये समय पाँच सालों में एक बार आता है, लेकिन भाग्यशाली है, दिल्ली वर्ष भर के भीतर ये अवसर फिर मिल गया । हर गली कूचा राजनैतिक दलों के गुणगानों से गुंजायमान है । किसी तिपहिये पर ट्टपांच साल केजरीवाल—केजरीवाल’ तो किसी पर चलो चलें मोदी के साथ’ के नारे के साथ वीररस से परिपूर्ण गानों से जनता के मत को मोहने का प्रयास जारी है । पर अचरज की बात कहिये या फिर समय का तकाजा, कांग्रेस का नारा तो वही पुराना है ट्टहर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की’ लेकिन जो गाने बनाये गये उनकी धुनों से प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस ने पहले से ही हार मान ली हो । और अब तो रही सही बसपा भी चुनावी समर में उतर आई है, बाकी दल तिपहियों से घूम रहे हैं, पर बसपा रुआब से छह पहियों की गाड़ी लेकर आई है और तो और उसके नारों को सुनकर लगता है वोट मांगने नहीं छीनने आई है, नारा है चढ़कर दुश्मन की छाती पर मोहर लगाओ, हाथी पर’।
ख्ौर ये तो थी प्रचार परिचर्चा अब जरा नेतानगरी की ओर दृष्टिपात करते हैं, नेतानगरी फिर से जनता के दरवाजों पर करबद्ध होकर पंक्ति में खड़ी है, लोग भी ठहाका लगाकर कहते हैं , भई बड़ी जल्दी दिल्ली में आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे, कैसे भी गाने बजाओ भ्ौया, या कैसे भी सिर झुकाओ अपना वोट तो अपने मन से ही देंगे ।’ राजनैतिक दल एड़ी चोटी का जोर लगाकर जनता को रिझाने में लगे हैं, पर भ्ौया ये पब्लिक है, ये सब जानती है। कुछ भाई लोग तो रात के अंधेरे में ये चर्चा करते अक्सर पाये जाते हैं कि भाई किस दल के कार्यालय में आज भोजन की जुगाड़ करनी है और सुरापान का अवसर मिलना है, जहाँ ये सारे इन्तजाम हों उसी के नारे लगा देंगें , और रही वोट की बात तो वो तो अपने मन से ही देंगे। ये हमें बेवकूफ बनाते हैं, और ये चुनावी मौसम ही तो होता है इन्हें बेवकूफ बनाने का, दूसरा व्यक्ति तभी ताली पीटकर बोल पड़ता है, वाह भई क्या बात कही है, आखिर ऊपर वाले के यहां है देर है अंधेर नहीं , सबको मौका देता है । तभी दूर से किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आती है, गली में एकत्रित सबकी यकायक एक साथ आवाज निकल पड़ती है, लो भई आ गईं लक्ष्मी माता और साथ में सुरा का भी प्रबन्ध है ।’ सभा विसर्जित होती है, गाड़ी वाले अपने काम पर लगते हैं और सभाकर्मी पंक्ति में ।
ये राजनीति का वो काला सत्य है जो सत्य होते हुये ऐसे परदे के भीतर है जहाँ हर किसी का आना जाना है । आज सत्ता बाजार में खड़ी है और सरेआम नीलाम होता है सिंहासन। इस सत्य से कोई अनजान नहीं, पर सब अनजान बनने का स्वांग रचा करते हैं । आज दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हर किसी का ईमान उछाला जा रहा है मात्र स्वयं की कीर्ति की ऊपर ले जाने की होड़ में ।
दृश्य जितने मनोरंजक हैं उससे कहीं अधिक स्थिति भयावह है, दिल्ली की सत्ता की नैया को किनारा न मिला तो इसके दूरगामी परिणाम किसी और को नहीं इन्ही गलियों में चुनावी परिचर्चा पर ठहाके लगाने वाले लोगों को ही भुगतना पड़ेगा । माना दिल्ली सुशिक्षित है लेकिन अब इस सुशिक्षित दिल्ली को स्वतंत्र नहीं एकमत होना होगा।
इस चुनावी समर में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति सुदृढ़ मानी जा रही है, लेकिन जब यहाँ की खूबसूरत सड़कों को छोड़, गन्दी गलियों, जहाँ कोई जाना तक पसंद नहीं करता, राय लेना तो दूर की बात, लेकिन आज जब इनकी चर्चायें सुनीं, तो सारा चुनावी परिदृश्य बदल गया । अचानक आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी लगने लगा । ऐसा प्रतीत होने लगा, कहीं साल भर पहले का चित्रांकन न साबित हो ये चुनाव ।
अब वास्तविकता में न ये मोदी की परीक्षा है न केजरीवाल की, ये दिल्ली के विवेक की परीक्षा है, ये दिल्ली को तय करना है कि वह स्वयं को किस दिशा की ओर अग्रसर करती है ।अब देखना ये है कि सत्ता का ये ऊंट किस ओर करवट लेता है ??????????????
कीर्ति दीक्षित