मंगलवार, 19 जनवरी 2010
धर्मो रक्षति रक्षितः
भारतीय संविधान ने अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायालय स्थापित किये....लेकिन कर्तव्यों को भारतीय परंपरा के अनुसार हमारे नैतिक niyam के रूप में हमारे समक्ष रखा.....इन्हें किसी न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नही होता,,,,लेकिन आज के परिवेश को देख कर क्या कोई कह सकता है की हमारी सरकारे कर्तव्यों का पूरी निष्ठा के साथ पालन करती हैं....कर्तव्यों का पालन केवल वोट की राजनीति के लिए होता है.....खैर चलिए वोट के लिए ही सही कुछ तो करते हैं...इसके पीछे हमारे राजनेता यही तर्क देंगे की अगर प्राणी साँस भी लेता है तो उसमे भी स्वार्थ होता है...पर आज स्वार्थ इतना हावी हो जाये की इन्सान को इन्सान न समझे..ये तो हद हो गयी....मैंने ज्यादा तो नहीं जानती पर इतना जरूर जानती हू कि हमारे रास्ट्रपिता का कहना था की राजनीति को धर्म से अलग नही किया जा सकता....बात ठीक भी है...पर अगर सब्जी में नमक ज्यादा पड़ जाये तो सब्जी का स्वाद ख़राब हो जाता है उसे कोई नही खा सकता...आज राजनीति की सब्जी में धर्म का नमक इतना ज्यादा हो गया है की उसे खाना तो दूर चखना भी संभव नहीं...हर दिन कोई चुनाव होता है...और हमारे माननीय नेतागन आते है और अपनी धर्म रूपी नमक से भरी हुई सब्जी को जनता के सामने परोस के चल देते है..मज़बूरी है जनता को तो वो सब्जी खानी ही होगी क्योकि उसके सामने कोई और दरवाजा नहीं जहाँ वो जा सके....अगर आज देश को धर्म के नाम पर ठगने वाली इन राजनेतिक पार्टियों से मुक्ति दिलानी है तो सबसे पहला कदम इन राजनेतिक पार्टियों के लिए उठाना होगा जो धर्म के नाम पर आम लोगो की जान लेने से भी पीछे नहीं हटती.... और निर्माण करनी होगी ऐसी पार्टी जहा धर्म तो हो पर वो धर्म जिसमे सभी के लिए समुचित स्थान हो...जो किसी को नुकसान न पहुचाये ..जो समाज को अमन और चैन की दिशा दिखाए....इसलिए सभी पार्टियों की मान्यता रद्द करकेनई पार्टी बनाये और नेताओ के लिए साफ हिदायत हो की इन पार्टियों में वही जगह पायेगा जो इंसानियत का धर्म जनता हो.....ऐसी पार्टियाँ बनाने के लिए लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को भी अपना काम ईमानदारी और लगन से करना होगा........
कीर्ति दीक्षित
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