शनिवार, 14 फ़रवरी 2015
रविवार, 1 फ़रवरी 2015
नगरी नगरी द्वारे द्वारे (Article on today’s scenario of Delhi Election)
Article on today’s scenario of Delhi Election:
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू रे सांवरिया ये धुन बनी तो थी कृष्ण के लिए, लेकिन आजकल नेतानगरी जनता के लिए गा रही है । करबद्ध हो ढोल—नगाड़ों के साथ जनता की पूजा करने निकलती है ।चारों ओर चुनावों का शोर है, वैसे तो ये समय पाँच सालों में एक बार आता है, लेकिन भाग्यशाली है, दिल्ली वर्ष भर के भीतर ये अवसर फिर मिल गया । हर गली कूचा राजनैतिक दलों के गुणगानों से गुंजायमान है । किसी तिपहिये पर ट्टपांच साल केजरीवाल—केजरीवाल’ तो किसी पर चलो चलें मोदी के साथ’ के नारे के साथ वीररस से परिपूर्ण गानों से जनता के मत को मोहने का प्रयास जारी है । पर अचरज की बात कहिये या फिर समय का तकाजा, कांग्रेस का नारा तो वही पुराना है ट्टहर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की’ लेकिन जो गाने बनाये गये उनकी धुनों से प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस ने पहले से ही हार मान ली हो । और अब तो रही सही बसपा भी चुनावी समर में उतर आई है, बाकी दल तिपहियों से घूम रहे हैं, पर बसपा रुआब से छह पहियों की गाड़ी लेकर आई है और तो और उसके नारों को सुनकर लगता है वोट मांगने नहीं छीनने आई है, नारा है चढ़कर दुश्मन की छाती पर मोहर लगाओ, हाथी पर’।
ख्ौर ये तो थी प्रचार परिचर्चा अब जरा नेतानगरी की ओर दृष्टिपात करते हैं, नेतानगरी फिर से जनता के दरवाजों पर करबद्ध होकर पंक्ति में खड़ी है, लोग भी ठहाका लगाकर कहते हैं , भई बड़ी जल्दी दिल्ली में आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे, कैसे भी गाने बजाओ भ्ौया, या कैसे भी सिर झुकाओ अपना वोट तो अपने मन से ही देंगे ।’ राजनैतिक दल एड़ी चोटी का जोर लगाकर जनता को रिझाने में लगे हैं, पर भ्ौया ये पब्लिक है, ये सब जानती है। कुछ भाई लोग तो रात के अंधेरे में ये चर्चा करते अक्सर पाये जाते हैं कि भाई किस दल के कार्यालय में आज भोजन की जुगाड़ करनी है और सुरापान का अवसर मिलना है, जहाँ ये सारे इन्तजाम हों उसी के नारे लगा देंगें , और रही वोट की बात तो वो तो अपने मन से ही देंगे। ये हमें बेवकूफ बनाते हैं, और ये चुनावी मौसम ही तो होता है इन्हें बेवकूफ बनाने का, दूसरा व्यक्ति तभी ताली पीटकर बोल पड़ता है, वाह भई क्या बात कही है, आखिर ऊपर वाले के यहां है देर है अंधेर नहीं , सबको मौका देता है । तभी दूर से किसी गाड़ी के रुकने की आवाज आती है, गली में एकत्रित सबकी यकायक एक साथ आवाज निकल पड़ती है, लो भई आ गईं लक्ष्मी माता और साथ में सुरा का भी प्रबन्ध है ।’ सभा विसर्जित होती है, गाड़ी वाले अपने काम पर लगते हैं और सभाकर्मी पंक्ति में ।
ये राजनीति का वो काला सत्य है जो सत्य होते हुये ऐसे परदे के भीतर है जहाँ हर किसी का आना जाना है । आज सत्ता बाजार में खड़ी है और सरेआम नीलाम होता है सिंहासन। इस सत्य से कोई अनजान नहीं, पर सब अनजान बनने का स्वांग रचा करते हैं । आज दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हर किसी का ईमान उछाला जा रहा है मात्र स्वयं की कीर्ति की ऊपर ले जाने की होड़ में ।
दृश्य जितने मनोरंजक हैं उससे कहीं अधिक स्थिति भयावह है, दिल्ली की सत्ता की नैया को किनारा न मिला तो इसके दूरगामी परिणाम किसी और को नहीं इन्ही गलियों में चुनावी परिचर्चा पर ठहाके लगाने वाले लोगों को ही भुगतना पड़ेगा । माना दिल्ली सुशिक्षित है लेकिन अब इस सुशिक्षित दिल्ली को स्वतंत्र नहीं एकमत होना होगा।
इस चुनावी समर में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति सुदृढ़ मानी जा रही है, लेकिन जब यहाँ की खूबसूरत सड़कों को छोड़, गन्दी गलियों, जहाँ कोई जाना तक पसंद नहीं करता, राय लेना तो दूर की बात, लेकिन आज जब इनकी चर्चायें सुनीं, तो सारा चुनावी परिदृश्य बदल गया । अचानक आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी लगने लगा । ऐसा प्रतीत होने लगा, कहीं साल भर पहले का चित्रांकन न साबित हो ये चुनाव ।
अब वास्तविकता में न ये मोदी की परीक्षा है न केजरीवाल की, ये दिल्ली के विवेक की परीक्षा है, ये दिल्ली को तय करना है कि वह स्वयं को किस दिशा की ओर अग्रसर करती है ।अब देखना ये है कि सत्ता का ये ऊंट किस ओर करवट लेता है ??????????????
कीर्ति दीक्षित
झूम उठी भारतमाता
Artical on 26 jan © Reserved to Kirti Dixit
झूम उठी भारतमाता
दूर क्षितिज पर बैठा एक पंछी आज भरत—धरा पर देख रहा है,कैसा विहंगम दृश्य है ! आज क्षितिज नृत्यशाला बना हुआ है, काले मेघ जलपुष्पों की वृष्टि कर माता वसुन्धरा का अभिवादन कर रहे हैं। भारत माता का वक्षस्थल शीतल और नेत्र अश्रुपूरित हैं ।दग्ध भारतभूमि आज शांत है, विह्वल भरत—भूमि आज विश्राममयी प्रतीत हो रही है । निश्चित ही कुछ अनुपम हुआ है !
चातक माता से पूछ बैठा हे माता वसुन्धरे ! ऐसा क्या अद्भुद हुआ है, जो आप इतनी आलोकित,प्रफुल्लित प्रतीत हो रही हैं? तब भारतमाता नेत्रालिंगन कर बोलीं, आज पर्व है! आज उत्साह—दिवस है! आज भारत का गणतंत्र दिवस है । अधीर चातक कुछ अचरज से बोला, परन्तु ये पर्व तो 66 वर्षों से मनाया जा रहा है, इससे पूर्व आपका मुखमण्डल इस प्रकार आलोकित न होता था ?
सुनो पुत्र ये स्वरलहरियाँ, मानो माँ वागीशा के हृदय का स्पंदन हैं, सुर भी प्रफुल्लित हैं । तभी नेत्रों की कोर से निकला एक अश्रु बोल पड़ा, ट्टयत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ ! आज देवों का स्वर्गावतरण हुआ है, आज माता भावमयी हैं। माता का स्पन्दित हृदय भी बोल उठा, सदैव मेरी विपदा पर रुदन करने वाले ये मेघ, आज मुझ पर जलपुष्पों की वृष्टि कर रहे हैं ।
चातक की जिज्ञासा बढ़ी, पर माता ऐसा क्या अद्भुद घटा है? भावविभोर माता ने दृष्टिपात किया — राजपथ पर, देखो, मुझको अभिनव—दान मिला है’, मेरी बेटियों को अधिकार मिला है। आज ये देश मेरी बेटियों का सम्मान कर रहा है, आज ये देश मेरी बेटियों पर गर्व कर रहा है । जाओ मेघाें, मेरी सन्तानों का जलाभिषेक करो, श्वेत वर्ण से गौरव तिलक करो । आज मेरी बेटियों को गृहणी से प्रहरी का अधिकार मिला है । ज्यों ज्यों राजपथ पर इनके कदम चलें त्यों त्यों तुम गौरवगान करो । आज अपने अस्तित्व की शक्ति का डंका बजाने ये राजपथ पर चल पड़ीं हैं, देखूं तो ! मेरे अतीत के कांटे कहीं इनकी पग बाधा न बनें, मेघों जाओ मेरे आंचल को अपने जल से कोमल कर दो । आज मैं प्रसन्नता से नृत्य कर रही हूँ, मेरा मान मुझे वापस मिल रहा है । सीता, पद्मावती, पन्ना, लक्ष्मीबाई जैसी अनगिनत बेटियों की अलौकिक ज्योति को विस्मृत कर चुका ये देश, दिव्या से दिव्यता प्राप्त कर रहा है, स्नेह से सिंचित हो उठा है। मेरी विवशता पर मौन रहने वाला ये देश, मेरे दंशों पर तंज कसने वाला ये देश, आज कृतज्ञ है । आज में जी उठी हूं, मेरे निस्तेज होते प्राणों को प्राणवायु मिली है । देवों से विमुख हुई मुझको, अब देवाशीष मिला है । देखो मेरी बेटियाँ देश की प्रहरी बन राजपथ पर झण्डा वन्दन कर रही हैं । आज मेरी बेटियों को उनका सम्मान मिल रहा है । मेरी बेटियों को कभी दहेज की अग्नि में दग्ध करने वाला, कभी उनके सम्मान को कुत्सित करने वाला और भी न जाने कितने दंश देने वाला ये देश मेरी बेटियों के प्रति आज कृतज्ञ है ।
दृष्टिपात करो ! राजपथ पर बैठे इस जनसमुदाय की ओर, इनमें कितने पिताओं का ललाट गर्व से चमक उठा है, कितने भाइयों के मुख प्रसन्नता से खिल उठे हैं, और उधर तो देखो कितनी माताओं के आंचल बार बार अपने नेत्रों पर परदा डाल रहे हैं ताकि उनकी बेटियों को उनकी ही नजर न लग जाये । इधर दूसरी ओर दृष्टिपात करो मेरे बच्चों, अनगिनत पिताओं के नेत्रों में अपनी बेटियों को देश के लिए विदा करने का स्वप्न अंकुरित हो उठा है । सब कुछ सुरम्य है, कितने वर्षों के बाद ये अवसर आया है । आज का उत्सव इतिहास के पन्नों पर स्वर्णांकित हुआ है । आज मैं प्रसन्न हूँ, अलंकृत हूँ । अब गर्व से कहती हूँ , मैं भारत माता हूँ !
लेकिन बस अब एक ही विनती है मुझे यूँ ही अलंकृत रहने देना, गरिमामयी रहने देना, मेरे सम्मान के तुम प्रहरी बनना । मुझको भारत माता रहने देना !
कीर्ति दीक्षित
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